सतनाम पंथ के प्रवर्तक व सृजनहार अनंत कोटि ब्रम्हांड नायक सच्चिदानन्द स्वरूप श्री सर्व समर्थ साहेब जगजीवन दास भारत के महान संतों में सदैव ही अग्रणी व पूजनीय रहे आप सामाजिक चेतना ,नाम उपासना, सामाजिक कुरीतियों के खंडन, जातिगत व धार्मिक भेदभाव से परे रह कर एक स्वस्थ समाज, सत्यमय समाज, धर्ममय समाज, और संस्कारमय समाज की स्थापना हेतु निरंतर कटिबद्ध रहे आप निराकार व नाम उपासक रहे एवं देश व समाज के समस्त लोगों को समस्त दोषों व विकारों से बचने के लिए पाखंडों कुरीतियों और भेद भाव से रहित होकर नाम उपासना में रत रहने का संदेश दिया आपका जन्म पावन भारत भूमि के उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के घाघरा नदी के किनारे सरदहा नामक ग्राम में हुआ माघ शुक्ल सप्तमी को संवत 1727 में ब्रह्म मुहूर्त में हुआ आपके माता पिता श्री कमला देवी एवं श्री गंगाराम चंदेल वंशी छत्रिय थे एवं स्वभावत: बहुत ही धार्मिक ईश्वर भक्त विनय शील और दीन दुखियों व असहयो की सेवा करने वाले थे बाल्य काल में आप की शिक्षा दीक्षा क्योंकि विद्यालयी चलन न था गुरुकुल भी बहुत दूर दूर होते थे अतः पिताजी ने घर पर ही शिक्षा दीक्षा करने के विचार से शिक्षक (पंडित) गुरु नियुक्त किया प्रथम दिवस ही साहब जगजीवन दास ने शिक्षक गुरु के सम्मुख यह पंक्तियां कही
छिन मह साजि सबै रचि लीन्हा नाहि विलंब लगायो रे ]
तत्पश्चात शिक्षक गुरु ने भांति भांति की परीक्षा ली तो यह विदित हुआ कि यह बालक धर्मशास्त्र व वेद आदि मे पहले से ही पूर्ण पारंगत तथा निष्णात है अतः शिक्षक गुरु ने बालक को प्रणाम कर विदा ले ली युवा होने पर आपने गोंडा के महान गुरु गुरुसडी श्री विश्वेश्वर पुरी जी से मंत्र दीक्षा ली आपने समस्त संसार को गृहस्थ आश्रम में रहते हुए मोक्ष का मार्ग पाने का सरल सहज मार्ग प्रशस्त किया आप के 5 पुत्र हुए (1) श्री साहेब सभा (शोभा) दास (2) वल्ला दास (3) श्री साहिब पत्ता दास (4) श्री साहेब अनंत दास (5) श्री साहेब जलाली दास ,शिवरानी कुँवरि व जय रानी कुंवरि नाम की दो पुत्रियां थी
आप परम सिद्ध संत थे आपने सतनाम पंथ की स्थापना की आपकी ख्याति इतनी अधिक थी कि तत्कालीन ईरान और अफगानिस्तान से भी लोग आप के दर्शनार्थ आते रहे धर्म के रक्षार्थ व ईश्वर नाम की महिमा सामाजिक व धार्मिक पाखंडो के विरोध एवं जातिगत भेदभाव को नष्ट करने के लिए एवं विशुद्ध ईश्वरीय सत्ता की प्राप्ति हेतु एवं मनुष्यों के दुखों को नष्ट कर उन्हें सन्मार्गी बनाने हेतु आपने 4 पावा 14 गद्दी की रचना की जो अग्रलिखित हैं
सदैव ईश्वरीय नाम जप में तल्लीन एवं ईश्वरीय नाम महिमा का संदेश जन जन तक पहुंचाने हेतु 36 महंत 33 भजनानंदी (सुमिरिनिहा) हुए यह सभी संत उच्च कोटि के साहित्यकार एवं सिद्ध संत हुए जिन्होंने तत्कालीन समाज को जाति पाँति छुआछूत एवं सामाजिक कुरीतियों से परे रह कर ईश्वर नाम महिमा ध्यान एवं सुमिरन की महिमा बता कर समाज को नई दिशा दी जो अग्र लिखित हैं
सरदहा ग्राम में साधनात्मक विघ्न उपस्थित होने पर आपने सरदहा ग्राम का त्याग कर कोट -- वन जो अब (कोटवा धाम) मे अपनी साधना स्थली बनाई और आजीवन यहीं रहकर तप साधना कर राष्ट्र व समाज की सेवा करते हुए सतलोक लीन हुए स्वभावत: आप चमत्कार विरोधी रहे परंतु कठिन सामाजिक परिस्थितियों के चलते आपने ऐसी ऐसी ईश्वरीय लीला दिखाई जो सामान्य सिद्धों के बस की बात नहीं कुछ कीर्ति गाथाएं इस ब्लॉग में शामिल करने का प्रयत्न अवश्य रहेगा ताकि सभी सतनामी भक्त लाभान्वित हों
सादर बंदगी
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Wednesday, May 29, 2019
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